Sunday 24 August 2014

विचार

विचार  ...?
निराली  सी इनकी दुनियाँ
आते हैं |जाते है |
निरंतर  मन के आकाश पर
घुमड़ते रहते  है|
 आवारा बादलों की तरह ,
ऊपर नीचे  
व्र्त्ताकर  ,त्रिकोण ,चतुर्भुज
असंख्य  आकृतियाँ....................|
फिर एकदम ..गुतम गुत्था होते से |
कभी कभी एक सरल रेखा जैसे चलते फिरते ,हाथ  हिलाते
मुस्कुराते हुए चले जाते अपने अपने रास्ते |

दूसरे ही पल ..वापस aa आ धमकते ,
कुछ  हडबडाते  से ..|
.तीव्र  गति से भागते दौड़ते ,
एक दूसरे से टकराते
बन जाते  अंतर  द्वन्द
क्षण  मात्र मैं  ला देते  विध्वंस |

कुछ पलों बाद .........स्वयं ही
 सहलाते स्वयमेव  धावों  को |
खुद के लाये विनाश  को देख कर
आँसू  बहाते .सहम जाते ,
सकुचाते से बैठ जाते
एक कोने  में
चुपचाप |
चुपचाप?
क्या सच में ?
नहीं ......वे  बैठे  बैठे ही फूलते रहते ,
गुब्बारे कि तरह |
फिर बिना पंखों के ही उड़ने लगते
मन के आकाश पर |
झूमते लहराते नाचते कूदते
धमा  चोकडी मचाते खुशी से  फूले  न समाते
और ...फूलते फूलते .....फट जाते ...फटाक ..|

लाल  पीले होते  ,हात लहराते
,उंगली दिखाते
उलाहने  आरोप  प्रत्यारोप ...नजाने क्या क्या |
अरे अरे ...भाई रुको ...रुको तनिक
तुम भी कुछ आराम करो
और मुझे भी सोने दो |
खाम खः  ..नीद खराब कर दी

ममता


 




Wednesday 5 March 2014

किनारे

किनारे
 बांधे रहे नदी को
पर ये कभी नहीं कहा .की .
ठहर जाओ
नदी भी बहती रही
छू छू कर उन्हें.....
अपनी बूंदों से
बुझाती रही उनकी प्यास
वैसे प्यासी तो
 वह भी थी
पर किस से कहती ?
नदी
और प्यासी !!
कोई विस्वास करेगा ?

ममता