शब्द जो करते हैं
आहत
रहते हैं महफूज ता उम्र
स्मृतियों के पिटारे में .........
ठुक जाते हैं
कील की तरह
मन की कोमल दीवार पर
और उन्हीं कीलों पर
टंग जाती हैं
तार तार हुई भावनाएं
बेबस से हम
करते रहते हैं प्रयास
इन तारों को जोड़ने का
छिपा कर दर्द
अलापने लगते हैं
फिर से नया राग
पर ...
मन के एक कोने में
सिसकती रहती हैं
भावनाएं
सुप्त हो जाता है निनाद
रह जाते हैं केवल शब्द
जो कर गए थे
आहत
ममता