शब्दों की नाव बना कर ....
कूद पड़ी हूँ
अभिव्यक्ति के सागर में
भर लिया है
भुजाओं में बल विचारों का......
पतवार है सम्वेदनाओं की .....
भावनाओं की लहरों के संग बहते बहते
अभी तो मिलना है
चिंतन मनन और
ज्ञान की अनेकों तरंगों से .......
जिनके आश्रय से
एक एक पग बढ़ेगी मेरी नाव
और मैं पहुच जाऊँगी उस पार !!!
मेरे सपनों के गाँव में .....
जहाँ जोहते हैं बाट
सृजन के पाँखी......
अपने परों पर सहेजे हवाओं की सोंधी गंध
और जोहते हैं बाट
छंदों के वृक्ष
अपने पत्तों पर
मुक्तक की बूँदें समेंटे ओस की तरह
इन बूंदों से गुजर कर आएगी जब
प्राची की रश्मि.....
रस और अलंकार के रंगों में नहाई तब ........
होगी सतरंगी भोर
मेरे सपनों के गाँव में
ममता