Friday 16 March 2012

पचासवा बसंत

पन्द्रह  मार्च १९६३
हाँ ..यही  तो है ...
मेरा  जन्म  दिवस ....
पूरे   उनंचास  बसंत हो गए विदा ..
और्   पचासवे  ने दी है दस्तक !
बेटी  को  बिदा  करके ......
बच्चों  से  अलग  रह के ......
समय  गुजारने  के  बहाने  तलाशते ...
एकांत  घर  में  एकाकीपन  को झेलते .
रह  रह  के  याद  आता  है बचपन |
इस  पचासवे बसंत में ,
वे  लम्हे   जिनमें  थी ...
माँ  की  डाट  ,लाड  प्यार ,रूठना ,मनाना ....
और  पिता   का  वरदहस्त ....

चिंता ?
चिंता  के  लिए   कोई  स्थान  ही  नहीं |
अपनों  के  मजबूत  हाथ ,
हर परेशानी  को बीच में ही रोक लेते थे |
 ''  मैं हूँ न ''
भाई  का  स्नेह  में  पगा  आश्वासन
याद  आता  है  इस  पचासवे  बसंत में |
गोबर से लीपा आँगन ,
सामने बड़ा सा चबूतरा ....
और   उसके  बगल  में  खड़ा
 वो  बूढा  नीम  का पेड ......
हर  घटना  का साक्षी |
और जब फूलता तो ...
फूलों  का  ढेर  लग जाता चबूतरे पर
फिर निम्बोली का टपकना .....
सामने वाली मोटी डाल  के खोखले में 
 झांकते  तोते  के  बच्चे ....
और  उनकी  पीली  चोंच ..
सब  याद  आता  है  इस  पचासवे  बसंत में |
सामने  खेतों  की  ओर  जाता रास्ता ..
काँधे  पर  हल  रखे  आते  जाते  लोग ...
 ''जय राम जी की ''मनमोहक अभिवादन ..
बैल गाडी से अनाज  का लाना ..
संयुक्त परिवार का सुख ...
पूरे गाँव  को
 एक  परिवार  मानने  का जज्वा
सचमुच बहुत याद आता है पचासवे बसंत में
बैलों  के गले में बंधी  घंटियों  का स्वर ...
गाय का  रम्भाना ...
बछड़े का उछलना  कूदना ...
थनों में  उतरता दूध ...
और गाय  का तन्मय  हो  के
 बछड़े  को  चाटना ....
हलाकि  बहुत  दिन  हुए  गाँव  छोड़े
पर लगता है
 अभी कल् की ही तो बात है ..
सब कुछ याद आता है इस पचासवे बसंत में
वे हाथ  जो दिया करते थे आशीर्वाद
अब नहीं हैं
तभी  तो  अब
 ,उनके  होने  का  अर्थ  समझ  में आता  है
अब  जब ,
 अपने  कमरे  में  बैठती  हूँ .तो
याद  आती  है वे सूनी आँखें  |
जब  माँ  बिदा  करती  थी  मुझे ....
ओझल होने तक ताकती रहती थी ....
अपलक मौन ......
आज बेटी को बिदा करने पर
 समझ में आया उन आँखों का दर्द ...
इस पचासवे बसंत में

ममता





Thursday 8 March 2012

फाग


रंग  बिरंगे  रंग  उड़   रहे
फाग चल  रही  संसद  में |
होली  की  इन  बौछारों  से
सराबोर  सब  संसद  में ......रंग बिरंगे रंग ......

कुछ हुरियारे  कुछ हुरियारिन
मिलजुल  खेल   रहे   होली |
अलग अलग परिधान है उनके
अलग  अलग  उनकी  बोली |
अपने  अपने  हुनर  दिखावें
एक  दूजे  को   संसद   में| ..रंग बिररंगे रंग ......

कुछ  हुरियारे  भूके  प्यासे
कुर्सी   से   चिपके   जावें |
सारा ध्यान  लगा  खानें में
पेट  नहीं   पर   भर  पावें  |
भारत  का  ईमान  खा गए
बैठे    बैठे     संसद   में |..रंग बिरंगे रंग ....

इक   हुरियारिन   गोरीनारी
गुमसुम   सी   देखें  बैठी |
पहनावा   देसी   साडी   है
लेकिन   तन   है  परदेसी |
डोर  थाम  के  नाच नचावे
कठपुतली  सा  संसद   में  |रंग बिरंगे रंग ....

इक  हुरियारे  पगड़ी   वाले
मंद    मंद   से   मुस्कावें |
चाहे  जितना   रंग  लगाओ
कुछ  भी  बोल  नहीं  पावें |
छोटो  छोटी  बात  पूछ रहे
मैडम जी  से  व  संसद  में |रंग बिरंगे  रंग ...

इक   हुरियारे   प्रेम  पुजारी
दिखे   प्रेम   रंग  में   डूबे |
तन   से  तो  संसद  में  बैठे
मन   में   चलते   मनसूबे |
लाज  शर्म की तोड़ के सीमा
फ़िल्म   देखते   संसद   में |रंग बिरंगे रंग ....

इक हुरियारिन श्याम सलोनी
 हाथी   पर   बैठी    आवें |
चोराहे  को  देख   यकायक
प्रतिमा   बन कर  सज जावें |
एक अकेली  सब  पर  भारी
 अपने  घर  की  सासद में | रंग बिरंगे रंग ...

कुछ  हुरियारे  जादू   वाले
करतब   कर  के  दिखलावें
कभी  एक  पाले  में  दीखें
झट  दूजे  में   सज  जावें
अदला बदली दल की कर रहे
खेल  खेल  में  संसद   में
रंग  बिरंगे   रंग   उड़  रहे
फाग  चल  रही  संसद में