Sunday 26 February 2012

संध्या

लिए  गर्भ में भोर का अंकुर 
रजनी से मिलने को आतुर 
श्रम की लाली से आलोकित 
सूर्य  रश्मि पर आती संध्या
पल  पल ढलती जाती संध्या

दीप जलें जब शिव आलय में
उठे     नाद  डमरू के  स्वर में 
वेद  मन्त्र  नभ में जब गूँजे 
भक्ति भाव फैले  कणकण में 
तब  प्रभु के पावन चरणों में 
शीश    झुकाए  आती संध्या  

स्वेद बिंदु को पौछ  श्रमिक जब
 अपने   अपने   घर   को   आते  
कल्  रब   गान   सुनाते    पंछी  
तरु   की  फुनगी  पर  आ जाते 
तब   पैरों  में  पहन  के  पायल   
घुंगरू   को  छनकाती  संध्या  
  
जैसे    कोई     स्वप्न     सुंदरी    
उठा   के  घूँघट  झाँक  रही  हो    
अलसाई    बोझिल  अंखियों से     
प्रीतम   का  मुख  ताक रही हो   
सराबोर    हो    प्रेम   रंग    में     
 दुलहन    सी   शर्माती   संध्या    

जीवन  पथ  के  अंतिम  क्षण  में   
एकाकी   जब   मन   हो   जाता     
थकित    जीर्ण  काय   को  ढोता      
स्मृतियों    के     दीप   जलाता       
 चला   चली   की   इस  बेला में      
निष्ठुर   सी   हो   जाती  संध्या 

ममता                                   




Thursday 23 February 2012

जब भोर हुई





जब   भोर    हुई
 सूरज    निकला ,
नभ    मे  फैली
  वो    अरुणाई  |
टेसू   महके ,
,चिडियाँ  चहकें ,
धरती  पर  छाई  तरुनाई |

सर  पर  गागर   ले,
 जल   भरने |
चल   पड़ी  गुजरिया ,
बल   खाती |
ये   शीतल  मंद
पवन  बहती   ,
और   डाल  डाल
 को छू जाती

लो   चाक   चला   ,
कच्ची   मिटटी
लिपटी  कुम्हार   के
हाथों     मे |
आकार  मिला, 
बन  गयी   दिया ,
जलने को
 काली रातों मे |

काँधे   पर  हल
 लेकर  किसान   ,
बैलों    के   बंधन
खोल   रहा  |
बज   रहीं  घंटियाँ
छनन    छनन ,
स्वर  गलियारे   मे
डोल रहा  |

सरसों   की   कलियाँ
झूम  रहीं  ,
पीले   रंग  की
 चादर  ओढ़े |
भवरों की गुनगुन
 स्वर लहरी ,
कानों    मे मीठा  रस  घोले |

सूरज की परछाई  जल मे ,
रंग झिलमिल  झिल मिल
घोल   रही |
सतरंगी  किरने   कानों  मे ,
कुछ  गुपचुप   गुपचुप
बोल   रहीं|

तुम  भाप  बनो
और   उड़  जाओ ,
पहुचो  नभ   की
ऊंचाई    पर  |

फिर  बादल  की
 बौछार  लिए ,
छम   से   बरसो
इस  धरती  पर |

नदियों   मे पानी
तुम  भर दो |
इस   धारा   को
धानी  तुम  कर  दो |
धीरे धीरे  लाओ बसंत,
ये  सुबह  सुहानी
तुम कर दो |

ममता