Wednesday 2 November 2011

आदमी

ओड़   कर   चादर   दुखों    की
 चिंताओं    के     बोझ      की  ,
चल      रहा    है       आदमी /
ओर    अंतस     मैं  सुलगती
 दंभ     की    इस    आग   मैं,
 जल     रहा      है    आदमी /
दाह    की   पीड़ा    भयंकर
टीस    मन    मैं     झेलता ,
पल    रहा     है       आदमी /
जाने    किसकी    चाह    है ?
चाह   मैं   जिसकी    निरंतर ,
गल     रहा    है    आदमी /
मोहनी    मीठी    जुबां   से
जाल    सब्दों    के    बिछा ,
छल    रहा   है    आदमी /
भावनाये    हैं    तिरोहित
होले     होले    यन्त्र    मैं ,
ढल   रहा    है      आदमी  /
तन   हुआ   बूढा  बहुत तो
अपने   ही   घर द्वार  को ,
खल   रहा     है   आदमी /
वक्त   की   ठोकर   लगी तो
हडबडा कर   आँख  अपनी ,
मल   रहा    है    आदमी /

No comments:

Post a Comment