Sunday 30 October 2011

किसी को हम बुरा

किसी  को  हम  बुरा  कहते  किसी  को  अच्छा  कहते हैं  /
नजर   का  फेर  है   केवल   नजरिया  अपना   अपना है  /

जमानें  भर  की  खुशियाँ  हैं  मिरे  छोटे  से  इस  घर  मैं  /
वो  हैं   बेचैन   महलों    मैं   नजरिया   अपना  अपना  है  /

कहानी   मेरी  खुशियों  की   उन्हें   झूटी  सी   लगती है  /
गिला  हम  भी  नहीं  करते  नजरिया  अपना अपना है  /

हदें  जब  पार  ही  कर  ली  तो  समझाना   भला  कैसा  /
यहाँ  दुनिया  में  जीने  का  नजरिया  अपना  अपना है  /

क़यामत   है   इनायत   है   इबादत   है    मोहोब्बत  ये  /
इसे   महसूस  करने   का   नजरिया   अपना  अपना है  /

कभी   हम   गीत   गाते  है   गजल   भी  गुनगुनाते  है  /
खुसी  इजहार  करने  का  नजरिया  अपना  अपना है  /

आतंकबाद

भुलाये    भूलता   नहीं   वो   बीती    रात    का     मंजर  /
सिसकियाँ   खून  और  चीखों   भरे   हालत   का   मंजर  /

कहीं    जलते   हैं   चोराहे    कही    गलियारे   जलते   हैं  /
जला   कर   बस्तियां   सारी   सजाया   राख   का  मंजर  /

जिधर   देखो   उदासी   है   ये   कैसा   खोफ   का   आलम   /
डरी    बेबस   निगाहों   मैं   धडकती    साँस   का   मंजर   /

घुली   बारूद   पानी   मैं   बही   हैं    आग    की    नदियाँ  /
टपकती  आँख   से   आंसू   के  इस    हालत  का   मंजर  /

कहीं   मंदिर   कहीं   मस्जिद   कही   अरदास   होती   है /
धर्म   के   नाम   पर   चलते   हुए   व्यापर   का    मंजर  /

खुदा   की    जुस्तजू    उनको    खुदी   से  दूर   रहते   हैं  /
बसी  हैं   नफरते  दिल   मैं   सुलगता   आग  का   मंजर   /

Saturday 29 October 2011

हट जाएगा घनघोर

हट जाएगा  घनघोर तिमिर ,
       छट जाएगा सब अंधकार  /
            मैं ऐसी  ज्योति जलाऊगी  ,/
                 भारत मांता के चरणों मैं ,
                     दीपक बन कर जल जाँऊगी /



चेहरे पर चेहरा

चेहरे  पर  चेहरा  /
आवरण   सुनहरा  /
ढक   रहे  विद्रूप  को /
ओढ़   नकली  रूप  को   /
हम  यहाँ  पर   जी  रहे  /
चमचमाते   रूप   से  ,
 सम्मान का रस पी रहे  /
और   खुल   न  जाए
पोल  कोई   इसलिए  /
आवरण  पर  आवरण
पर  आवरण  ओढे रहे /

सजा करती थी चौपाले

सजा   करती   थी  चौपालें  पुराने  नीम के   नीचे /
मगर  अब  गाँव  में  उनके  कोई  चर्चे  नहीं  होते /

वो पीली घास  के  छप्पर  दीवालें कच्ची माटी की /
बुजुर्गों  से    भरे   पूरे  वो    चौबारे     नहीं    होते/

खनकती  चूडियाँ  ढेरों  लरजते  ओठ  और  आँखे  /
किसी  झीने  से  घूँघट  से  इशारे  अब  नहीं  होते  /

सुना  करते  थे  हम  किस्से  हमारी  दादी नानी से  /
मगर  अब  तो  बुजुर्गों  के  ठिकाने  ही  नहीं  होते  /

सदी बदली जहाँ  बदला  जमाना  अब  नया  आया  /
बिना  पैसो  के  दुनियाँ  मैं  गुजरे  अब   नहीँ  होते   /

बड़ी  हिम्मत  जुटा  कर  दिल  मैं  झाँक  कर  देखा  /
सुकूं  के  पल  पुराने  से  वहाँ  पर  अब  नहीं  होते  /






Friday 28 October 2011

कविता

 कोरे   कागज़  पर   कुछ  लिख   कर ,
  मन     हल्का     कर     लेते      हैं  /
  कुछ   शब्दों  को   मिलाजुला कर,
  हम    कविता    लिख    लेते    हैं  /

  कभी    किसी    से    नहीं     कहीं,
  अंतर्मन    में      उठती        बातें   /
  उन    खट्टी     मीठी    बातो      से  ,
  पन्नों     को     भर     लेते       हैं  /

  कुछ   सपने   कुछ    झूठे     वादे,
  हमें     रुला    कर     चले     गए  /
 आँख   पोंछ   कर   बड़े  जतन  से ,
  फिर    सपने    बुन     लेते     हैं  /

  सपने    तो    बस    सपने    होते ,
  सपनो     का     अपना     संसार  /
  और    हकीकत   तेज    धार   सी ,
  लोहे      की       पेनी      तलवार /

  हँसना    रोना    सपने    बुनना ,
  ये     भी     एक     हकीकत   है /
  सपनो   से    ही  साहस  ले  कर ,
  अपना    मन     भर    लेते     हैं  /

   सपने    सच    भी    होते     हैं ,
   ये   बात   हमें   मालूम   तो  हैं /
  लेकिन   इन  नयनो  का   क्या ,
  ये  आँचल   तर्   कर   लेते  हैं /

  सबकी   अपनी  अलग   कहानी ,
  अलग   सभी   की  यहाँ    कथा  /
  चलो   आज  सबकी   झोली  मैं  ,
   ममता   कुछ    भर    देते    हैं  /